लग्न के अनुसार कौन सा रुद्राक्ष धारण करें।
प्रत्येक लग्न के लिए एक ग्रह ऐसा होता है जो योगकारक होने के कारण शुभ फलदाई होता है। यदि ऐसा ग्रह कुण्डली में बलवान अर्थात् उच्चराषिस्थ, स्वराषि का या वर्गोत्तमी होकर केन्द्र या त्रिकोण भाव में शुभ ग्रह के प्रभाव में स्थित हो व इस पर किसी भी पाप ग्रह का प्रभाव न हो तो यह अकेला ही जातक को उन्नति देने में सक्षम होता है अतः इसका रत्न धारण करना विषेष शुभ फलदाई तथा चमत्कारी प्रभाव देने वाला होगा परन्तु यदि यह अषुभ भाव में अषुभ ग्रहों के प्रभाव से ग्रस्त हो तो जातक इस योगकारक ग्रह के चमत्कारी प्रभाव से वंचित रह जाता है।
ऐसी स्थिति में इसकी अषुभ भाव जनित अषुभता को नष्ट करने हेतु इसके लिये रुद्राक्ष को धारण किया जाना चाहिए।
आज कल की भाग दौड़ व अतिव्यस्तता भरी जीवन शैली में कई बार पूजा पाठ आदि के लिए समय दे पाना सम्भव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में रत्न धारक को सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए क्योंकि रत्न सकारात्मक ऊर्जा वाले व्यक्ति के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध होते हैं। जहां शुभ, योगकारक व बली ग्रहों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए रत्न धारण करना चाहिए वहीं अकारक, नीच राषिस्थ व अषुभ भाव में स्थित ग्रह के शुभ फल प्राप्त्र्थ रुद्राक्ष धारण करना श्रेष्ठ होता है।
मेष- इन्हें सूर्य का रत्न माणिक्य धारण करना चाहिए व तीनमुखी तथा पंचमुखी रुद्राक्ष भी पहनना चाहिए। जिन जातकों की पत्री में सूर्य शुभ प्रभाव में बली होकर बैठा है उन्हें यष, मान, कीर्तिलाभ व सत्ता की प्राप्ति होगी तथा जिनका सूर्य अषुभ भाव में बैठा है उन्हें नौकरी रोजगार व राजदण्ड आदि समस्याओं के निराकरण में सफलता प्राप्त होगी। आपके लिए सूर्य, चन्द्र मंगल व गुरु योगकारक ग्रह हैं। अतः इनके लिए माणिक्य, मोती, मंूगा व पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन मंगल अष्टमेष है अतः मंगल के लिए 3 मुखी रुद्राक्ष स्वास्थवर्धक हो सकता है। गुरु के लिए द्वादषेष होने के कारण पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करना समृद्धि कारक होगा। बुध, शुक्र व शनि इस लग्न के लिए बाधाकारक हैं अतः इन ग्रहों के लिए रत्न धारण न कर 4 मुखी, 6 मुखी व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करना श्रेष्ठ है। यदि सूर्य, चन्द्र भी छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान पर आ जाते हैं तो रत्न की अपेक्षा 1 मुखी व 2 मुखी रूद्राक्ष धारण करना ही श्रेष्ठ है।
वृष- वृष लग्न के लिए शनि, शुक्र व बुध योगकारक हैं इसलिए नीलम, हीरा व पन्ना पहनना आपके लिए शुभ है। अष्टमेष गुरु एवं द्वादषेष मंगल के अषुभ प्रभाव से मुक्ति हेतु 5 मुखी एवं 3 मुखी रूद्राक्ष धारण करें। सूर्य व चन्द्रमा भी इस लग्न के लिए बाधाकारक है इसलिए इनके लिए भी 1 मुखी व 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। शनि, शुक्र व बुध भी यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर आ जाते हैं तो रत्न की अपेक्षा 7, 6 व 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करना ही श्रेष्ठ है।
मिथुन- मिथुन लग्न के लिए बुध, शुक्र व शनि योगकारक हैं इसलिए आप पन्ना, हीरा व नीलम धारण कर सकते हैं परन्तु शुक्र द्वादषेष व शनि अष्टमेष भी है इसलिए इनका पूर्ण फल प्राप्त करने हेतु 4 मुखी रुद्राक्ष भी साथ में धारण करेंगे तो पूर्ण फल प्राप्त होता है। सूर्य, चन्द्रमा व मंगल की शुभता के लिए एक, दो व तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करें। गुरु के केन्द्राधिपति दोष के कारण गुरु का रत्न पुखराज अषुभफलदाई होता है अतः गुरु के शुभ फल हेतु रुद्राक्ष माला या पंचमुखी माला या पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
कर्क- कर्क लग्न के लिए चन्द्र, मंगल व गुरु योगकारक हैं इसलिए मोती, मूंगा व पुखराज धारण करना शुभ रहेगा परन्तु गुरु के षष्ठेष होने के अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु साथ में पंचमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए। शनि, बुध, शुक्र इस लग्न के लिए अकारक हैं तथा सूर्य में मारक प्रभाव है अतः इनके लिए 7, 4, 6 व 1 मुखी रुद्राक्ष धारण करना ही बेहतर होगा। यदि चन्द्र, मंगल व गुरु भी अषुभ भाव में आ जाएं तो रत्न की अपेक्षा 2, 3 व पंचमुखी रुद्राक्ष पहनें।
सिंह- सिंह लग्न के लिए सूर्य व मंगल योगकारक हैं। अतः इनके लिए माणिक्य व मूंगा धारण करें। अष्टमेष गुरु, द्वादषेष चन्द्रमा तथा अकारक शनि, बुध व शुक्र के लिए 5, 2, 7, 4 व 6 मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ रहेगा। यदि सूर्य व मंगल अषुभ भाव में स्थित हों तो इनके लिए भी 1 मुखी व 3 मुखी रुद्राक्ष ही धारण करना चाहिए।
कन्या- कन्या लग्न के लिए बुध, शुक्र व शनि योगकारक हैं इसलिए पन्ना, हीरा व नीलम धारण करना शुभ रहेगा परन्तु अष्टमेष शनि व द्वितीयेष शुक्र के लिए साथ में 7 व 6 मुखी रुद्राक्ष भी धारण करंे। यदि बुध, शुक्र व शनि अषुभ भाव में बैठे हों तो रत्न क अपेक्षा रुद्राक्ष ही धारण करें। कन्या लग्न के लिए सूर्य, चन्द्र व मंगल अकारक हैं इसलिए इनकी शान्ति हेतु 1, 2 व 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। गुरु के केन्द्राधिपति दोष के निवारणार्थ पंचमुखी रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करना हितकर रहेगा।
तुला- तुला लग्न के लिए शुक्र, शनि व बुध योगकारक हैं इसलिए हीरा, नीलम व पन्ना धारण करें। अष्टमेष शुक्र व षष्ठेष बुध के लिए इनके साथ 6 व 4 मुखी रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए। सूर्य, चन्द्र, मंगल व गुरु इस लग्न के लिए अकारक हैं अतः इनके लिए रत्न की अपेक्षा 1, 2, 3 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यदि शुक्र, शनि व बुध अषुभ भाव में बैठे हों तो रत्न की अपेक्षा 6, 7 व 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करना ही उचित होगा।
वृष्चिक- वृष्चिक लग्न के लिए सूर्य, चन्द्र, मंगल व गुरु योगकारक हैं इसलिए इनके रत्न माणिक, मोती, मंूगा व पुखराज धारण करें। मंगल के षष्ठेष होने के अषुभ प्रभाव से मुक्ति हेतु 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। अकारक शनि, शुक्र व बुध के लिए 7, 6 व 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यदि सूर्य, चन्द्र एवं गुरु अषुभ भाव में स्थित हों तो इनके लिए 1, 2 व 5 मुखी रुद्राक्ष ही धारण करें।
धनु- धनु लग्न के लिए गुरु, सूर्य व मंगल योगकारक हैं। अतः पुखराज, माणिक्य व मंूगा धारण करें। मंगल द्वादषेष भी है इसलिए 3 मुखी रुद्राक्ष पहनना भी आवष्यक है। अष्टमेष चन्द्रमा के लिए 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। अकारक शुक्र, बुध व शनि के लिए 6, 4 व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभत्व देता है। यदि सूर्य, मंगल व गुरु अषुभ भाव में बैठे हों तो इनके लिए 1, 3 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करें
मकर- मकर लग्न के लिए शनि, शुक्र व बुध योगकारक हैं अतः नीलम, हीरा व पन्ना धारण करना चाहिए। सूर्य, चन्द्र, मंगल व गुरु इस लग्न के लिए अषुभ हैं अतः 1, 2, 3 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यदि बुध, शुक्र व शनि अषुभ भाव में स्थित हों तो इनके लिए भी रत्न की अपेक्षा 4, 6 व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
कुम्भ- कुम्भ लग्न के लिए शनि, शुक्र व बुध योगकारक हैं अतः नीलम, हीरा व पन्ना धारण करें। शनि द्वादषेष भी है और बुध भी अष्टमेष का दोष होने से ग्रसित है इसलिए रत्नों के साथ 7 व 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। सूर्य, चन्द्र, मंगल व गुरु अकारक हैं अतः इनका शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए 1, 2, 3 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यदि बुध, शुक्र व शनि अषुभ भाव में स्थित हों तो इनके लिए भी रत्न की अपेक्षा 4, 6 व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
मीन- मीन लग्न के लिए शुक्र, बुध व शनि अषुभ हैं अतः इनके लिए 4, 6, व 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। चन्द्र, मंगल व गुरु कारक हैं अतः इनके लिए मोती, मूंगा व पुखराज धारण करें। अषुभ भाव में स्थित होने की स्थिति में रत्न की अपेक्षा 2, 3 व 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ रहेगा। षष्ठेष सूर्य का शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए 1 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यदि कुण्डली में सभी ग्रह उच्च राषिस्थ, स्वराषिस्थ या वर्गोत्तमी होकर शुभ भाव में बैठे हों तो सभी ग्रहों के रत्न धारण किये जा सकते हैं। इसके विपरीत यदि सभी ग्रह नीच राषिस्थ, शत्रु राषिस्थ या नीच नवांष में स्थित होकर अषुभ भावों में स्थित हों तो इनकी शुभता हेतु 1 से 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। यदि कुण्डली में अधिकांश ग्रह उच्च राशिस्थ, स्वराशिस्थ या वर्गोत्तमी होकर शुभ भाव में बैठे हों तो सभी ग्रहों के रत्न धारण किये जा सकते हैं।
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