माघ महीने में गंगा स्नान की महिमा - पंडित कौशल पाण्डेय


माघ महीने में गंगा स्नान की महिमा - पंडित कौशल पाण्डेय 
माघ मास 26  जनवरी से 24  फरवारी 2024 तक 
सनातन धर्म में 11 वां महीने को  माघ मास के नाम से जाना जाता है । इस महीने में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। माघ मास में 'कल्पवास' का विशेष महत्त्व है। माघ महीने  में संगम के तट पर निवास को 'कल्पवास' कहते हैं। इस कल्पवास का पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी पर्यन्त एक मास तक का विधान है। कुछ लोग पौष पूर्णिमा से आरम्भ करते हैं। 



महिमा माघ मास की माघ मास इतना पवित्र  है कि इसमें प्रत्येक नदी अथवा  तालाब  का जल गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है। इस मास की प्रत्येक तिथि को पर्व माना जाता है। पूरे मास माघ स्नान न कर पाने की स्थिति में शास्त्रों ने यह भी व्यवस्था दी है कि मास में कम से एक एक दिन तो अवश्य ही स्नान, दान, उपवास और पूजा करनी चाहिए

पद्म पुराण में इसका उल्लेख है। संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। संयम, अहिंसा एवं श्रद्धा ही 'कल्पवास' का मूल है।
कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।।
माघ शुक्ल सप्तमी को इस माघ शुक्ल सप्तमी व्रत का अनुष्ठान होता है। अरुणोदय काल में मनुष्य को अपने सिर पर सात बदर वृक्ष के और सात अर्क वृक्ष के पत्ते रखकर किसी सरिता अथवा स्रोत में स्नान करना चाहिए। तदनन्तर जल में सात बदर फल, सात अर्क के पत्ते, अक्षत, तिल, दूर्वा, चावल, चन्दन मिलाकर सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए तथा उसके बाद सप्तमी को देवी मानते हुए नमस्कार कर सूर्य को प्रणाम करना चाहिए।

माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत दान व तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानमात्र से होती है। अतः सभी पापों से मुक्ति व भगवान की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान व्रत करना चाहिए। इसका प्रारंभ पौष की पूर्णिमा से होता है। माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है। इस मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। कदाचित् अशक्तावस्था में पूरे मास का नियम न ले सकें तो शास्त्रों ने यह भी व्यवस्था दी है कि एक दिन तो अवश्य माघ-स्नान, दान, उपवास और पूजा करनी चाहिए। 
माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या मौनी अमावस्या के रूप में प्रसिद्ध है। अमावस्या के दिन सोमवार का योग होने पर उस दिन देवताओं को भी दुर्लभ हो ऐसा पुण्यकाल होता है क्योंकि गंगा, पुष्कर एवं दिव्य अंतरिक्ष और भूमि के जो सब तीर्थ हैं, ये सोमवती अमावस्या के दिन जप, ध्यान, पूजन करने पर विशेष धर्मलाभ प्रदान करते हैं। सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी ये चार तिथियां सूर्यग्रहण के बराबर कही गई हैं। इनमें किया गया स्नान, दान व श्राद्ध अक्षय होता है। माघ शुक्ल पंचमी अर्थात् वसंत पंचमी को सरस्वती मां का आविर्भाव-दिवस माना जाता है। शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी कहते हैं। ऐसे तो माघ की प्रत्येक तिथि पुण्यपर्व है तथापि उनमें भी माघी पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर भगवत्पूजन, श्राद्ध तथा दान का विशेष फल है। जो इस दिन भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करता है, वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर भगवान विष्णु के लोक में प्रतिष्ठित होता है। माघी पूर्णिमा के दिन तिल, सूती कपड़े, कंबल, रत्न, पगड़ी, जूते आदि का अपने वैभव के अनुसार दान करके मनुष्य स्वर्गलोक में सुखी होता है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चांद्रमास और दसवां सौरमास ‘माघ’ कहलाता है।  इस महीने में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। हिंदू धर्म के दृष्टिकोण से इस माघ मास का बहुत अधिक महत्व है। मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने-नहाने वाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्गलोक जाते हैं
माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयांति॥
इस माघमास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति धार्मिक पुस्तको का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुशासन पर्व में वर्णन है कि- माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का समागम होता है। सूर्य के मकरस्थ होने पर अर्थात माघ मास में जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग पाता है। जो माघ में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे नरक का दर्शन नहीं करता। जो माघमास में नियमपूर्वक एक समय के भोजन से जीवनयापन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर कुटुंबीजनों में महत्त्व को प्राप्त होता है। माघ की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान् माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है, और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है। माघ-स्नान के लिए प्रातः तिल,जल,पुष्प,कुश लेकर संकल्प करे। फिर निम्न प्रार्थना करें-

+दुःखदारिर्द्यनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च।
प्रातःस्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम॥
मकरस्थे रवौ माघे गोविन्दाच्युत माधव।
स्नानेनानेन मे देव यथोक्तफलदो भव॥
दिवाकर जगन्नाथ प्रभाकर नमोह्यस्तुते।
परिपूर्णं कुरूष्वेदं माघस्नानं महाव्रतम॥
माघमासमिमं पुण्यं स्नाम्यहं देव माधव।
तीर्थस्यास्य जले नित्यं प्रसीद भगवन् हरे॥

माघमास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है। फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों व नदियों में स्नान का बड़ा महत्त्व है। साथ ही मन की निर्मलता व श्रद्धा भी आवश्यक है। माघ मास में कड़ाके की ठंड पड़ती है और जनजीवन में निष्क्रियता व्याप्त हो जाती है। ऐसे मौसम में सुबह स्नान करने को एक धार्मिक कृत्य बनाकर हमारे मनीषियों ने सक्रिय जीवनशैली की आधारशिला रखी है। यह एक स्वाभाविक तथ्य है कि सुबह स्नान के पश्चात व्यक्ति निष्क्रिय होकर नहीं बैठ सकता। माघ स्नान शरीर को हर तरह के मौसम का सामना करने लायक बनाने का  उपक्रम भी है।

धार्मिक दृष्टिकोण से माघ  मास का बहुत अधिक महत्व है इस महीने में पवित्र नदियों और तीर्थो में स्नान की महिमा का कई  धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है की इस महीने में पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में स्थान पाता है-

माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे। ब्रह्माविष्णु महादेवरुद्रादित्यमरूद्गणा:।।
 अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।

प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्। दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।। 
अर्थात प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में माघ मास में प्रयाग में स्नान, दान, भगवान विष्णु के पूजन व हरिकीर्तन के महत्व का वर्णन करते हुए 

माघ मकरगत रबि जब होई। तीरतपतिहिं आव सब कोई।।
 देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।

पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में माघ मास के माहत्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है-
व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:।माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:।।
प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये।माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्ग लाभाय मानव:।।

अर्थात व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए स्वर्ग लाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान अवश्य करना चाहिए।

महाभारत 
माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्।श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।।(महाभारत अनु. 106/5)

अर्थात जो माघ मास में नियमपूर्वक एक समय भोजन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बजनों में महत्व को प्राप्त होता है।

अहोरात्रेण द्वादश्यां माघमासे तु माधवम्।राजसूयमवाप्रोति कुलं चैव समुद्धरेत्।।(महाभारत अनु. 109/5)

अर्थात माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है।

इनके अलावा कई अन्य धर्म ग्रंथो में भी माघ स्नान के महत्व के लिए काफी कुछ लिखा गया है।  जैसे की-
स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते।यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे।।

अर्थात जिन मनुष्यों को चिरकाल तक स्वर्गलोक में रहने की इच्छा हो, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर पवित्र नदी में प्रात:काल स्नान करना चाहिए।

माघ मास की ऐसी महिमा है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, नेमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। धर्मग्रंथों के अनुसार यदि इस प्रकार पूरे मास भगवान माधव का पूजन किया जाए तो वे अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

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