विश्वविजेता महाराज भोज -
राजा भोज जैसे अनेक राजाओं के बारे में हमारी इतिहास की किताबें मौन हो जाती हैं। सन् 1000 से आज तक भारत के इतिहास में आजतक ऐसा राजा नहीं हुआ। राजा भोज के बारे में थोड़ा सा भी पढ़ोगे तो पता चलेगा कि भारत में कैसे कैसे राजा होते थे।
भोजराज परमार इतिहास में दो हुए थे एक दिग्विजयी सम्राट थे जिनकी जीवनी आपको भविष्यपुराण से प्राप्त हो जायेगी दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार के पिताश्री थे विश्व विजय सम्राट महेश्वर परमार और दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार ने ६३७ से ६९३ ईस्वी तक राज किया था सम्पूर्ण धरातल विश्व पे। दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार की राजधानी थी उज्जैन और धारा इतिहास में दुसरे भोजराज परमार हुए थे उन्ही के वंश में १०१० (1010) -१०५५ (1055) ईस्वी तक राज किया इन दोनों को मिलाकर एक भोज बना दिया गया वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भोजराज परमार की इतिहास को मिटाया गया हैं जिसके कारण मुर्ख हिन्दू बिना सच्चाई जाने खुदको 800 साल मुग़ल का गुलाम कहलवाने में गर्व महसूस करे ना इतिहास में हम गुलाम थे ना वर्तमान में हम गुलाम है न भविष्य में हम हिन्दू कभी गुलाम रहेंगे (हमे गुलाम बनाया गया था इतिहास में वामपंथी द्वारा और आजकल मुस्लिम वोटबैंक के नेता द्वारा बनया जा रहा हैं) -:
दिग्विजयी सम्राट भोजराज रोम , ईरान , चीन , अरब , रूस तक भगवा ध्वज लहराया था तथा इतिहास में दिग्विजयी सम्राट का स्थान प्राप्त किया था कुल मिलाकर २९५ बड़े युद्ध किये और छोटे युद्ध (जिसे आज हम proxy war) के नाम से जानते है ऐसे युद्ध ६५५ से अधिक किये हैं परन्तु युद्ध का परिणाम सदेव कभी ना अस्त होनेवाले सूर्य की तरह हमेसा दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार के पक्ष में रहा ।
रोम , मैसिडोनिया पे शासन था हेराक्लीउस (Heraclius) का भारत विजय की मेह्त्वाकंशा ने हेराक्लीउस (Heraclius) की साम्राज्य के ध्वंश का कारण बना रोम के इस क्रूर शाशक ने झेलम होते हुये शाल्वपुर पर सन ६४० ईस्वी को आक्रमण किया था (अलवर का प्राचीन नाम) 45,000 तक सिर्फ घुड़सवार सैनिक थे और 5 से 7000 तक पैदल सैनिक थे इस आक्रमण में 12,000 राजपूत वीरो के साथ भोजराज ने रोम के शाशक को धुल चटा दिया था परिणाम संधि के दौरान हेराक्लीउस (Heraclius) ने इन सब राज्य को सम्राट भोजराज को सौंपकर प्राण दान की भीख मांग कर लौटा और इन समस्त राज्य पर सम्राट भोजराज परमार का आधिपत्य स्थापित होगया बोस्निया, मैसिडोनिया ,मान्तेग्रो, स्लोवेनिया सर्बिया ,क्रोअशिया ।
दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार के सभा में उनके दूत राजेश्वर प्रताप एक चिन्ताजनक खबर के साथ उपस्थित हुआ चीन के तांग साम्राज्य के शाशक तांग तायिज़ोंग (Tang Taizong) ने सन ६३८ ईस्वी हाटक (मानसरोवर के पास का प्रांत) पे आक्रमण कर गणपर्वत तक कब्ज़ा कर लिया था तांग तायिज़ोंग (Tang Taizong) की एक लाख सेना की कमर तोड़ दिया था भोजराज के 18000 राजपूत वीरो ने यह ऐतिहासिक लड़ाई कही ना पढाया जाता है ना बताया जाता हैं इस हाटक (मानसरोवर के पास का प्रांत) से लेकर ल्हा चू और झोंग चू यह चीन पर्वतस्थल हैं यहाँ तक लाखो चीनी सैनिक लाशों की हड्डीया इस युद्ध के चार सताब्दी तक मिला था तांग तायिज़ोंग (Tang Taizong) ने अपनी लिपि ज्होऊ (Zhou) में इस युद्ध को सदी का सबसे भयानक युद्ध घोषित किया था तांग तायिज़ोंग (Tang Taizong) । भोजराज परमार ने चीन के 67 प्रतिशत भूभाग उत्तर चीनी हिस्सा , मेसोपोटामिया, ज्हेजिआंग (Zheziang) को अपने साम्राज्य में समिल्लित कर लिया था ।
सन ६५० याज्देगेर्द तृतीय (Yazdegerd-III) ईरान के शहंशाह व्यापारी के वेशभूषा में पञ्चनद के तट से होते हुए वेण्वाट (उज्जैन के दक्षिण में) आकर भोजराज के साम्राज्य विध्वंश का योजना बना रहे थे मरुभूमि के रास्ते समझते हुए हमला के लिए प्रस्तुति लेकर वापस लौटे ईरान के शहंशाह याज्देगेर्द तृतीय (Yazdegerd-III) भोजराज उनके बोलचाल से समझ गए थे की यह बहरूपिये होंगे उन्होंने एक दूरदर्शिता का कौशल दिखाते हुए आनेवाले समस्याओं को जान कर वेण्वाट (उज्जैन के दक्षिण में) सीमा की और सैनिक तैनात कर दिए थे ईरान के शहंशाह को दिग्विजयी सम्राट के दूरदर्शिता का अंदाज़ा नहीं था 34 से 42000 को ऊटों की सेना लेकर आ धमके सम्राट की दूरदर्शिता की वजह से कोई भी जीवित नहीं बचा था शहंशाह की सेना की और से ।
इस युद्ध के बाद ईरान पर हमला कर के ईरान को जीत लिया था ।
पलेस्टाइन (Palestine) के आमिर अल-खत्ताब को सन ६४४ ईस्वी में मिस्र जाकर हराया था पलेस्टाइन और मिस्र तक भगवा ध्वज लहराकर व्यवसाय एवं
अर्थ व्यापर पर कब्ज़ा कर लिया जिसका फलस्वरूप यह हुआ की वह पे रहनेवाले मुस्लिम को व्यवसाय एवं किसी तरह का अर्थ व्यापर एवं मस्जिद में प्रवेश करने के लिए कर वसूला जाता था भोजराज परमार की दुश्मनों के प्रति कठोर एवं सहशक्त कदम से भारतवर्ष पर कोई बाहरी आक्रमणकारी का प्रवेश करना असंभव होगया था ।
अल-नाफिया राशिदून साम्राज्य अफ्रीका विजय के बाद दरद(दर्दिस्तान जो कशमीर के उत्तर में है) कश्मीर में इस्लामी पताका लहराने निकला था सन ६६३ लूटेरो के समूह के साथ आक्रमण कर दिया था दरद की सीमा रेखा के अंदर कदम रखने से पूर्व ही भोजराज परमार ने नाफिया को खदेर दिया गया अल-नाफिया बंदी बने रहे भोजराज परमार के राजधानी धारा की कालकोठरी में ।
अरब के चार शाशकों को हराकर अरब विजय किया था अरब विजय की गाथा भविष्यपुराण में उपलब्ध हैं , उन चार शशको को अरब जाकर अरब में परास्त किया था दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार ने -:
१) मूसा-नुसैर उत्तर अफ्रीकी के सुल्तान थे दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार से परास्त हुए थे सन ६७० ईस्वी ।
२) शाबान-इब्न-अली अरब , तुर्क के सुल्तान थे जो दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार को शाबान-इब्न-अली हराकर सन ६८१ ईस्वी तुर्क और अरब तक भगवा फैराया था ।
३) अब्बास-तालिब सन ६६९ सीरिया , क़तर , जॉर्डन के सुल्तान थे । जिहादी लूटेरा अब्बास-तालिब को परास्त कर जॉर्डन तक भगवा लहराया था ।
४) अल-हज्जाज इराक में सन ६९० ईस्वी में दिग्विजय भोजराज ने अल-हज्जाज को परस्त कर इराक के सडको में जुलुस निकाला था ।
दाबुयीद साम्राज्य (Dabuyid dynasty) की गाव्बरिः (Gavbarih) के साथ हुआ था ६५६ ईस्वी में गाव्बरिः पर्शिया का सुल्तान था पर्शिया के सुल्तान सतलुज नदी के तट पे हुआ था जो आज के वक़्त रूपनगर पंजाब से लगा हैं वहा पर्शिया के सुल्तान को हराकर उनको बंदी बनाकर उनके साम्राज्य पे भगवा ध्वज लहरानेवाला महावीर धर्म योद्धा था दिग्विजय सम्राट भोजराज ।
दिग्विजयी सम्राट ने पैगम्बर मुहम्मद की सेनापति अराफात – इब्न- इब्राहीम की सेना को परास्त किया था इतिहास मिटा दिया गया वामपंथी द्वारा भविष्य पुराण में इनके युद्धों के वर्णन मिलेंगे-:
दिग्विजयी सम्राट भोजराज परमार ने इतिहास लिखा अरब को हराकर पुर विश्व में भगवा परचम फिराया था गौरवशाली इतिहास की पुनरावृति करने की ज़रूरत हैं आज हमे विश्व विजय नहीं करनी बल्कि हमें बचे कुचे एक भूमि का टुकड़ा जिसे हम माँ तो कहते हैं परन्तु मानते नहीं, अगर हम हिन्दू खुदको उस दिग्विजयी सम्राट के संतान माने होते जिसके सामने मुहम्मद ने सन ६३६ को तलवार डाल कर शीश झुका कर संधि की बात कही थी क्यों की दिग्विजयी सम्राट भोजराज ने अरब की पूरी धरती को अपने कब्जे में कर लिया था ।
ऐसे इतिहासों को छुपाकर वामपंथियों ने मैकोले के साथ मिलकर भारत की यूवा पीड़ियों की भविष्य को अँधेरे में धकेल दिया ।
संदर्भ -:
१) भोज प्रबंध
२) भोजराज कृत चम्पू रामायण
३) (Tang Taizong) ने अपनी लिपि ज्होऊ (Zhou) में चीन और भोजराज परमार के साथ युद्ध का वर्णन किया हैं ।
✍🏻 मनीषा सिंह
युद्ध जीतने के अतिरिक्त जो राजा भोज ने किया चलिये उस पर नजर डालते हैं:-
भोज नाम से और भी राजा हुए हैं जैसे मिहिर भोज। हम यहां बात कर रहे हैं उन राजा भोज की जिन्होंने अपनी राजधानी धार को बनाया था। उनका जन्म सन् 980 में महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैनी में हुआ। राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे। पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के राजसिंहासन पर हुआ।
ग्वालियर से मिले महान राजा भोज के स्तुति पत्र के अनुसार केदारनाथ मंदिर का राजा भोज ने 1076 से 1099 के बीच पुनर्निर्माण कराया था। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले 'भोजपाल' कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधी देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी।
आज सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं।
राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं। आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के कंजर्व वाटर का लाभ आम लोगों को मिल रहा है। भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है। भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था। यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था।
उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया। उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं।
राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया। राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में 'सरस्वतीकण्ठभरण' नामक भवन बनवाए थे जिसमें धार में 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। एक अंग्रेज अधिकारी सीई लुआर्ड ने 1908 के गजट में धार के सरस्वती मंदिर का नाम 'भोजशाला' लिखा था। पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी। मुगलकाल में मंदिर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है।
गुजरात में जब महमूद गजनवी (971-1030 ई.) ने सोमनाथ का ध्वंस किया तो इतिहासकार ई. लेनपूल के अनुसार यह दु:खद समाचार शैव भक्त राजा भोज तक पहुंचने में कुछ सप्ताह लग गए। तुर्की लेखक गरदिजी के अनुसार उन्होंने इस घटना से क्षुब्द होकर सन् 1026 में गजनवी पर हमला किया और वह क्रूर हमलावर सिंध के रेगिस्तान में भाग गया।
तब राजा भोज ने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना एकत्रित करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास एक मास के युद्ध में मारकर सोमनाथ का बदला लिया और फिर 1026-1054 की अवधि के बीच भोपाल से 32 किमी पर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ की स्थापना कर दी। महाराजा भोज से संबंधित 1010 से 1055 ई. तक के कई ताम्रपत्र, शिलालेख और मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं।
राजा होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं। मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे जिसमें धर्म, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, विज्ञान, कला, नाट्यशास्त्र, संगीत, योगशास्त्र, दर्शन, राजनीतिशास्त्र आदि प्रमुख हैं।
उन्होंने ‘समरांगण सूत्रधार’, ‘सरस्वती कंठाभरण’, ‘सिद्वांत संग्रह’, ‘राजकार्तड’, ‘योग्यसूत्रवृत्ति’, ‘विद्या विनोद’, ‘युक्ति कल्पतरु’, ‘चारु चर्चा’, ‘आदित्य प्रताप सिद्धांत’, ‘आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश’, ‘प्राकृत व्याकरण’, ‘कूर्मशतक’, ‘श्रृंगार मंजरी’, ‘भोजचम्पू’, ‘कृत्यकल्पतरु’, ‘तत्वप्रकाश’, ‘शब्दानुशासन’, ‘राज्मृडाड’ आदि ग्रंथों की रचना की।
'भोज प्रबंधनम्' नाम से उनकी आत्मकथा है। हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवाकर धार नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई, जो हनुमान्नाष्टक के रूप में विश्वविख्यात है। तत्पश्चात उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की, जो अपने गद्यकाव्य के लिए विख्यात है।
भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। इसी तरह उन्होंने नाव व बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया पर भारतीयों का दुर्भाग्य है कि वह स्वतंत्र भारत में भी महान नहीं बताए जाते।
इसी प्रकार महाराज अग्रसेन जिनके पुतले हर शहर में मिल जाएंगे तथा राष्ट्रीय राजमार्ग नौ का नाम उन्हीं के नाम पर रखा हुआ है तथा जिनके वंशजों द्वारा आज भी भारत छोडो विश्व के अनेक भूभागों पर अनेक मानव कल्याण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं तथा गौतमी पुत्र शतकर्णी, यशवर्धन, नागभट्ट और बप्पा रावल, मिहिर भोज, देवपाल, अमोघवर्ष , इंद्र द्वितीय, चोल राजा राजेंद्र चोल, पृथ्वीराज चौहान, हरिहर राय और बुक्का राय, राणा सांगा, श्रीकृष्णदेववर्मन, महाराणा प्रताप, गुरुगोविंद सिंह, शिवाजी महाराज, पेशवा बाजीराव और बालाजी बाजीराव, महाराजा रणजीत सिंह, महाराजा सूरजमल आदि अनेक महान राजा इस भारत भूमि पर हूए पर उनका महिमा मंडन वर्तमान इतिहास के पाठ्यक्रम में गायब है।
राजा महाराजाओं की तो छोड़ो विश्व के लिए आदर्श श्री राम व श्री कृष्ण को ही ईस्ट इंडिया कंपनी व ब्रिटिश शासन के अंग्रेज नौकरो के बराबर लॉर्ड पढाया, बताया व रटाया जाता है जैसे कि लॉर्ड क्लाईव फलाणा ध्यकड़ा व लॉर्ड रामा तथा लॉर्ड कृष्णा।
मेरा निजी विचार है कि हम भारतीयों को घटिया फिल्म आदि का विरोध करने के साथ साथ स्कूली इतिहास के पाठ्यक्रम को बदलवाने के लिए एक बड़ा आंदोलन करना चाहिए बाकी तम समझदार सो🙏
साभार
✍🏻शिव दर्शन मलिक
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