रत्न और ज्योतिष :- पंडित कौशल पाण्डेय
रत्नो का जीवन में बड़ा ही महत्व है , नव ग्रहों के हिसाब से नव रत्न है , ज्योतिष में आप लग्न कुंडली के द्वारा अपना जीवन रत्न , भाग्य रत्न आदि जान सकते है जैसे -जन्म कुंडली में (1,5,9) त्रिकोण सदैव शुभ होता है इसलिए लग्नेश, पंचमेश व नवमेश का रत्न धारण किया जा सकता है।
यदि इन तीनों में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो रत्न धारण नहीं करना चाहिए। यदि शुभ ग्रह अस्त या निर्बल हो तो उसका रत्न पहनें ताकि उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाकर शुभ फल दे।
यदि लग्न कमजोर है या लग्नेश अस्त है तो लग्नेश का रत्न पहनें।
यदि भाग्येश निर्बल या अस्त है तो भाग्येश का रत्न पहनें।
लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न, पंचमेश का कारक-रत्न और नवमेश का भाग्य-रत्न कहलाता है।
अपनी कुंडली में प्रत्येक ग्रह के बलाबल पर विचार करें और तद्नुसार रत्न के बारे में निर्णय करें।
सूर्य सिंह लग्न का स्वामी है। सूर्य की स्थिति ठीक न हो तो माणिक्य धारण करें क्योंकि सूर्य को आत्मा कहा जाता है। यह पूर्व दिशा का स्वामी और इस का रंग तांबे के समान है। कुंडली में सूर्य की स्थिति देखें और माणिक्य धारण करें। यदि लग्न में सूर्य हो तो माणिक्य पहनें क्योंकि लग्नस्थ सूर्य संतान में बाधा एवं स्त्री के लिए कष्ट दायक होता है।
यदि सूर्य गुरु नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पू.भाद्रपद) का स्वामी हो तो हर प्रकार की उन्नति के लिए माणिक्य धारण करें।
यदि सूर्य अपने नक्षत्रों (कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा) को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो भी माणिक्य धारण करें।
चंद्रमा कर्क लग्न का स्वामी है चंद्रमा मन का कारक है यदि निम्नलिखित स्थिति चंद्रमा की जन्मकुंडली में हो तो उसे मोती अवश्य धारण करना चाहिए।
मंगल मेष और वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है यदि कुंडली में मंगल दूषित, अस्त, प्रभावहीन हो तो मंगल का रत्न मंूगा धारण करें,
यदि कुंडली में निम्नलिखित ग्रह स्थिति हों तो मूंगा धारण करने से शुभ फल मिलता है। यदि जन्मकुंडली में मंगल राहु या शनि के साथ कहीं हो तो मूंगा धारण करें। लग्न में मंगल हो तो मूंगा पहनें।
बुध मिथुन-कन्या राशि का स्वामी बुध है और इसका रत्न पन्ना है। यदि मिथुन और कन्या लग्न हो तो पन्ना धारण करना चाहिए। यदि कुंडली में निम्न योग हों तो पन्ना शुभ फल देता है। जिस कुंडली में बुध छठवंे, आठवें भाव में हो तो उसे पन्ना शुभ फल देता है। जिस जातक की कुंडली में बुध मीन राशि में हो, उसे पन्ना धारण करना चाहिए।
बृहस्पति धनु और मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति है इस का रत्न पुखराज है। इन लग्न वालों को पुखराज पहनना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में गुरु पाचवें, छठवें या बारहवें भाव में हो तो पुखराज पहनना चाहिए। यदि गुरु मेष, वृषभ, सिंह, वृश्चिक, तुला, कुंभ, मकर, राशियों में हो तो पुखराज अवश्य धारण करें। मकर राशि में गुरु हो तो तुरंत पुखराज धारण कर लें।
शुक्र वृषभ और तुला लग्न का स्वामी शुक्र है। इस का रत्न हीरा है। इन्हें हीरा शुभ फल देता है। घर में पति-पत्नी में कलह हो तो हीरा पहनें। जंगल में घूमने वालों को हीरा पहनना चाहिए क्योंकि उन्हें विषधर जंतुओं से पाला पड़ता है और हीरा जहर से बचाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर अपने भाव से अष्टम या षष्ठम हो तो हीरा पहनें।
शनि: मकर और कुंभ लग्न का स्वामी शनि है। जन्म लग्न से या चंद्रमा से शनि 12वें, जन्म का और दूसरा होता है। इस पूरे समय को साढ़ेसाती कहा जाता है। शनि एक राशि पर ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार तीन राशियों पर इसका भ्रमण साढ़ेसात वर्ष का होता है। यदि किसी की साढ़ेसाती अनिष्टकारी हो तो शनि का रत्न नीलम धारण करना चाहिए। निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर नीलम धारण किया जा सकता है।
राहु यह छाया ग्रह है। इसका रत्न गोमेद है। इस का रंग पीला, गोमूत्र के समान होता है। जिन जातकों की राशि या लग्न मिथुन, तुला, कुंभ या वृषभ हो, उन्हें गोमेद धारण करना चाहिए। लग्न में, केंद्र स्थान (1, 4, 7, 10) या एकादश भाव में राहु हो तो गोमेद धारण करें।
यदि राहु नीच राशि (धनु राशि) का हो तो गोमेद धारण करें। यदि राहु श्रेष्ठ भाव का स्वामी होकर सूर्य से दृष्ट या सूर्य के साथ हो या सिंह राशि में स्थित हो तो गोमेद पहनें।
केतु यह भी छाया ग्रह है। इसका रत्न लहसुनिया है। अंग्रेजी में ‘कैटस आई’ स्टोन’ कहते हैं। लहसुनिया जीवन में शुभ प्रभाव पैदा करने में समर्थ होता है। संतान व लक्ष्मी वृद्धि एवं शत्रु सहांरक होता है।
जिसकी जन्मकुंडली में केतु ग्रह दूषित व दुर्बल हो, उसे लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचंम, नवम या दशम भाव में हो तो लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में केतु, मंगल, गुरु या शुक्र के साथ हो तो लहसुनिया धारण करें।
शुभ अथवा सौम्य ग्रहों के साथ केतु हो तो लहसुनिया पहनें। यदि भूत-प्रेतादि का भय हो तो लहसुनिया धारण करें। केतु से संबंधित जो कारक है या जिन पदार्थों का केतु कारक है जीवन में उन चीजों की उन्नति के लिए लहसुनिया धारण करें।
मेष, मीन या धनु राशि का चंद्रमा हो या अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र हो या बुधवार अथवा शुक्रवार का दिन हो तो सायंकाल अनामिका में लहसुनिया धारण करना श्रेयस्कर तथा शुभ फलदायक होता है। इस रत्न का प्रभाव तीन वर्ष तक रहता है।
क्या न करे :- ---?
त्रिकोण का स्वामी यदि नीच का है, तो वह रत्न न पहने।
कभी भी मारक, बाधक, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न न पहनें।
शुभ और निर्बल ग्रहों को रत्नो के द्वारा बल दिया जाता है
अशुभ और पापी ग्रहों का उपाय और दान किया जाता है
साथ ही फ़ोटो में समझा रखा है किस रत्न कि कितनी आयु है
कौन से रत्न को कब बहने
जानिए रत्ननो के साथ कौन सा रत्न शुभ है और कौन सा अशुभ
रत्नो के मंत्र
रत्न किस धातु में पहने
कृपया बिना किसी योग्य ज्योतिषी के परामर्श के बिना कोइ रत्न न पहने। धन्यवाद्
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