सकठ चौथ 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकट या संकटा चौथ कहलाती है। इसे वक्रतुंडी चतुर्थी, माही चौथ, तिल अथवा तिलकूट चतुर्थी व्रत भी कहते हैं।
सकट चौथ का पर्व 29 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा. सकट चतुर्थी का त्योहार भगवान श्री गणेश को समर्पित हैं। सकट का अर्थ होता है संकट और संकट के समय विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की विधि विधान से पूजा करने से जीवन में आने वाले सभी तरह के कष्टों को दूर करने में मदद मिलती हैं।
सनातन धर्म में श्री गणेश चतुर्थी व्रत का बहुत बड़ा महत्व है।हर महीने दो गणेश चतुर्थी आती हैं, लेकिन माघ माह में चतुर्थी को बहुत खास माना गया है।
इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इसें सकट चौथ, सकंष्टी चतुर्थी और तिलकुट चौथ भी कहा जाता है।
इस दिन माताएं दिन भर व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
सकट चतुर्थी पर तिल और गुड से बनी चीजों का खाने की परंपरा है इसलिए इसे तिलकुटा भी कहा जाता है
सकट चौथ पूजन व्रत विधि
सकट चौथ के दिन महिलाएं प्रात:काल स्नान के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी की पूजा करती हुई पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। इसके बाद शाम को गणेश जी विधि-विधान से पूजन एवं फल-फूल, तिल, गुड़ आदि अर्पित किया जाता है।
गणेश जी की पूजा में दूब चढ़ाना नहीं भूलें। गणपति के सामने दीपक जलाकर गणेश जी के मंत्र का जाप करें।
चंद्रमा के उदय के बाद नीचे की ओर देखते अर्घ्य दें।
सकट चौथ व्रत कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।
गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।
स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।
इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।
सकट चौथ व्रत दूसरी कथा
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई। उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था। काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था। इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।
संकट चौथ का महत्व...
सभी संकटों से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो करें इस बार की संकटा चौथ का व्रत...
पुराणों में इस संकट चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है। विशेषकर महिलाओं के लिए इस व्रत को उपयोगी माना गया है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान श्रीगणेश की पूजा करने से जहां सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, वहीं इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है।
इस दिन तिल दान करने का महत्व होता है। इस दिन श्रीगणेशजी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले विघ्न विनाशक भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना जो लोग नियमित रूप से करते हैं, उनकी सुख-समृद्घि में बढ़ोतरी होती है।
मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। माघ मास की यह चतुर्थी संक्रांति के आसपास आती है।
यहीं से सभी शुभ कार्य प्रारम्भ होते हैं इसलिए श्रीगणेशजी की उपासना का भी सबसे अधिक महत्व है।
पूजन में अधिक सामग्री न भी हो तो सच्चे मन से की गई किसी भी देवता की आराधना का फल अवश्य मिलता है। इस दिन मंगलमूर्ति श्रीगणेश का पंचामृत से स्नान करने के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौली अर्पित करना चाहिए। तिल से बनी वस्तुओं अथवा तिल-गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए।
ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ
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