बसंत पंचमी 2024 :- पंडित कौशल पाण्डेय

बसंत पंचमी 2024  :- पंडित कौशल पाण्डेय 
माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में जाना जाता है ,इस वर्ष बसंत पंचमी का पर्व  बुधवार 14 फ़रवरी 2024 को मनाया जायेगा।

बसंत पंचमी 2022


बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है। यह पर्व बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है।बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है। 

भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ कहकर ऋतुराज बसंत को अपनी विभूति माना है। बसंत ऋतु कामोद्दीपक होता है। इसके प्रमुख देवता काम तथा रति है। अतएव काम देव तथा रति की प्रधानतया पूजा करनी चाहिये। 
हमारे तंत्र शास्त्रों में भी ऋतु का बहुत महत्व है। तंत्र शास्त्रों के अनुसार वशीकरण एवं आकर्षण से संबंधित प्रयोग एवं हवन आदि यदि बसंत ऋतु में किये जाये तो वह बहुत ही प्रभावी, शुभ एवं फलदायी रहते हैं। 

हमारे वैदिक शास्त्रों में  बसंत पंचमी और माँ  सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है जो इस प्रकार से है 
 जब भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी के वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी तथा मलीनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमशः पुस्तक तथा माला धारण किये थीं। ब्रह्माजी ने उस देवी से वीणा बजाकर संसार की मूकता तथा उदासी दूर करने के लिए कहा। तब उस देवी ने वीणा के मधुर-नाद से सब जीवों को वाणी दान की, इसलिये उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि को देने वाली है। 

इसलिये बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। सरस्वती चिदानन्दमयी, अखिल भुवन कारण स्वरूपा और जगदात्मिका है। इन्हें महासरस्वती, नील सरस्वती भी कहते हैं। 
मां सरस्वती ब्रह्माजी की पुत्री है। रंग इनका चंद्रमा के समान धवल, कंद पुष्प के समान उज्जवल है। चारों हाथों में यह वीणा, पुस्तक माला लिये हैं एवं एक हाथ वर मुद्रा में है। यह श्वेता पद्मासना हैं। शिव, ब्रह्मा, विष्णु व देवराज इंद्र भी इनकी सदैव स्तुति करते हैं। हंस इनका वाहन है। जिन पर इनकी कृपा हो जाये उसे विद्वान बनते देर नहीं लगती। 

संगीत और अन्य ललित कलाओं की अधिष्ठात्री देवी भी सरस्वती ही हैं। शुद्धता, पवित्रता, मनोयोग पूर्वक निर्मल मन से करने पर उपासना का पूर्ण फल माता अवश्य प्रदान करती हैं। जातक विद्या, बुद्धि और नाना प्रकार की कलाओं में सिद्ध सफल होता है तथा उसकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। 
आम तौर पर लोग पूछते हैं कि बसंत पंचमी के दिन हमें क्या करना चाहिए। बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से मां सरस्वती की पूजा होती है, परंतु उसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। इस दिन प्रातःकाल तेल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिये और पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिये। इसके बाद पितृ तर्पण और ब्राह्मण भोजन का भी विधान है। मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का बसंती वस्त्रों और पुष्पों से शृंगार किया जाता है तथा गाने-बजाने के साथ महोत्सव मनाया जाता है। यह ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं।

इस दिन विशेष रूप से लोगों को अपने घर में सरस्वती यंत्र स्थापित करना चाहिये, तथा मां सरस्वती के इस विशेष मंत्र का 108 बार जप करना चाहिये। मंत्र - ‘ऊँ ऐं महासरस्वत्यै नमः’

ज्ञान-बुद्धि ही जीवन को उध्र्वगति दे सकता है। ज्ञान की महिमा को सर्वाेच्च रूप में स्वीकार किया गया है। विद्याप्रदायिनी मां सरस्वती हंसवाहिनी, चार भुजावाली, वीणा-वादिनी व श्वेत वस्त्रावृत्ता हैं। संगीत, कला व ललित कलाओं की अधिष्ठात्री देवी भी मां सरस्वती ही हैं। 

इन्हें महा सरस्वती भी कहते हैं। वे शशि की भांति धौला व कुंद, पुष्प के समान उज्ज्वल हैं। इनके करों में वीणा, पुस्तक एवं माला हैं तथा हस्त वरमुद्रा मंे है। वे श्वेत ‘पद्मासना’ हैं। इनकी स्तुति ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवराज इंद्र भी सदैव करते हैं। इनका वाहन हंस है जिसपर मां सरस्वती की कृपा हो जाय, उसे विद्वान बनते देर नहीं लगती। मां सरस्वती का विशेष उत्सव माघ की शुक्ल पंचमी है, जो बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। 

मां सरस्वती सत्गुण संपन्न हैं, वे विभिन्न नामों से भी जानी जाती हैं। जैसे शारदा, वाचा, बागीश्वरी ब्रह्मी, वाग्देवी, भारती, महावाणी, प्रज्ञा, सवित्री, वीणा-वादिनी, पुस्तक धारिणी, वीणापाणि आदि। ऋग्वेदानुसार वे सौम्य गुणों को प्रदान करने वाली, रूद्र, वसु व आदित्य आदि सभी देवों की रक्षिका हैं। इन्हें प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य जगत के समस्त सुखों को भोगता है। इनकी कृपा से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि व बह्मर्षि हो जाता है। वे सर्वत्र व्याप्त हैं। बसंत पंचमी को इनका जन्म-दिवस मनाया जाता है। 

पढ़ने वालो बच्चो के लिए कुछ खास उपाय :-
बच्चों की परीक्षा मार्च अप्रैल में होने वाली है आज मै कुछ रोचक उपाय बता रहा हूँ जिसके करेने से बच्चे जो एक बार पढ़ लगे उन्हें याद रहेगा और परीक्ष में अच्छे अंक से पास भी हो जायेगे। 
साधना विधि: 
इस साधना को स्त्री-पुरूष व बच्चे कर सकते हैं। नियम संयम का पालन कर माघ शुक्ल पंचमी के दिन प्रातः उठकर नित्य-क्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि कर पीत वस्त्र धारण करने के उपरांत पूजा कक्ष में पीले आसन पर बैठ जायंे। सरस्वती जी का चित्र व अन्य कोई विग्रह तथा ताम्र पत्र पर निर्मित प्राण-प्रतिष्ठित सरस्वती यंत्र को स्टील की प्लेट पर स्वास्तिक अथवा अष्ट-दल बनाकर पीले पुष्प का आसन बना कर स्थापित करें। 

अब विधिपूर्वक संकल्प करके, न्यास, ध्यान आदि करने के पश्चात यंत्र को अष्ट-गंध का तिलक कर, चंदन, अक्षत, रोली, पुष्प, धूप-दीप से पूजन करें। किसी वस्तु के अभाव में अक्षत चढ़ा दें। 
गाय के घी का दीपक साधना काल तक प्रज्ज्वलित रहना चाहिए। तदोपरांत स्फटिक की माला से निम्न मंत्र की पांच माला (5 ग् 108 बार) जाप करें। 

मंत्र: ‘‘ऊँ ऐं सरस्वत्यै नमः’’ इसके बाद भगवती से ‘क्षमस्व परमेश्वरी’ यह कहकर क्षमा प्रार्थना करें। जप के उपरांत यंत्र को पूजा स्थल पर रख दें तथा बाद में नित्य प्रतिदिन एक माला मंत्र का जाप कर मां सरस्वती का पूजन करें, मां का आशीर्वाद अवश्य ही प्राप्त होगा। 
मां के चित्र अथवा यंत्र के सम्मुख विद्यार्थी अपनी लेखनी व पुस्तक अवश्य रखें क्योंकि इनमें मां सरस्वती का वास होता है। 
वसंत पंचमी के अतिरिक्त इस साधना को शुक्ल पक्ष की किसी भी पंचमी अथवा गुरुवार के दिन से प्रारंभ किया जा सकता है। 
‘‘या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ वस्त्रावृत्ता। या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना।। 
या ब्रह्माच्युत शङ्करा प्रभृर्तिमिर्देथे सदावन्दिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाङ्यापहा।।

निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें

1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने,विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥
2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।

4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।

7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती
तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी
पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा
सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी
नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी
एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:
जिह्वाग्रे वसते नित्यमं,ब्रह्मरूपा सरस्वती, 
सरस्वती महाभागे विद्येकमललोचने
 विद्यारूपा विशालाक्षि विद्या देहि नमोस्तुते”

पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ 
 राष्ट्रीय महासचिव -श्री राम हर्षण शांति कुंज,दिल्ली,भारत

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