मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय

मकर संक्रांति 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय 
15 जनवरी 2024  को मकर संक्रांति का पर्व पुरे देश में मनाया जायेगा 


मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी 2023 को मनाया  जायेगा। 
ज्योतिष विशेषज्ञ पंडित कौशल पांडेय के अनुसार 14 जनवरी को शाम 8:43  बजे सूर्य देव धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। 
सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद हो रहा है और उदया तिथि के अनुसार पुण्यकाल और मकर संक्रांति और गंगा स्नान,दान,  पुण्यकाल  रविवार 15 जनवरी को मनाया जायेगा ,


उदयातिथि के अनुसार, पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान करना शुभ होता है. 

मकर संक्रांति 2024 शुभ मुहूर्त 
(Makar Sankranti 2024 Shubh Muhurat)
मकर संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त
मकर संक्रान्ति सोमवार, जनवरी 15, 2024 को
मकर संक्रान्ति पुण्य काल - 07:15 ए एम से 05:46 पी एम
अवधि - 10 घण्टे 31 मिनट्स

मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल - 07:15 ए एम से 09:00 ए एम
अवधि - 01 घण्टा 45 मिनट्स
मकर संक्रान्ति का क्षण - 02:54 ए एम

पुण्यकाल में स्नान,ध्यान पूजा, मंत्र जाप, दान आदि के लिए विशेष शुभ है.

रविवार की सुबह से ही संक्रांति स्नान, दान शुरू हो जायेगा। माघ मास में जिस दिन सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस दिन को मकर संक्रांति कहते हैं.इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते है तथा दो माह तक रहते हैं. शनि देव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. 

यह पर्व प्रति वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन कई बार यह पर्व 15 जनवरी को भी मनाया जाता है। 
मकर संक्रांति का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।जिस दिन सूर्य मकर राशि पर संक्रमण करता है उसी दिन को मकर संक्रांति कहते हैं। यह पर्व बड़ा पवित्र होता है। इसी दिन से देवताओं का दिन भी प्रारंभ होता है। ऐसी मान्यता है कि मनुष्यों के छः मास के बराबर देवताओं का एक दिन होता है और उसी के बराबर रात्रि भी होती है।

जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं। सूर्य का कर्क से धनु तक का काल दक्षिणायन माना जाता है। यह काल देवताओं का रात्रि काल माना जाता है। 
सूर्य की मकर राशि से मिथुन राशि तक की अवधि को उत्तरायण कहते हैं, जिसे देवताओं का दिन माना जाता है।

मकर संक्रांति से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। इस अवधि काल में विवाह, चूड़ाकर्म सगाई आदि सभी मांगलिक कार्यों और देव प्रतिष्ठा, अनुष्ठाानादि धार्मिक कार्यों के साथ-साथ गृह प्रवेश, गृहारंभ आदि महत्वपूर्ण कार्या विशेष रूप से संपन्न किए जाते हैं। देश के पहाड़ी तथा विभिन्न मैदानी क्षेत्रों में मकर संक्रांति खिचड़ी संक्रांति के रूप में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन लोग दोपहर में तिल मिश्रित खिचड़ी खाते हैं और एक दूसरे को तिल के लड्डू, रेवड़ी आदि भेंट करते हैं।

राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मकरगत सूर्य के विषय में कहा है 
माघ मकरगत रवि जब होई तीरथपतहि आउ सब कोई।
माघ मास में जब सूर्य मकर राशि पर होते हैं उस समय तीर्थराज प्रयाग में सभी लोग स्नान दानादि पुण्य कर्म करने के लिए आते हैं। प्रयाग में आज भी गंगा, यमुना, सरस्वती के तटों पर प्रति वर्ष माघ मेला लगता है, श्रद्धालु जन दूर-दूर से आकर इस पुण्य पर्व का लाभ प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि जब भीष्म पितामह महाभारत के युद्ध में वाणों की शय्या पर पड़े थे उस समय सूर्य दक्षिणायन थे, पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की और तब अपने प्राणों का त्याग किया और सीधे देव लोक को चले गए। म मकर संक्रांति के दिन माघ स्नान का प्रमुख पर्व भी होता है। इस दिन पवित्र नदियों सरोवरों में स्नान करने से पुण्य फल और भगवान नारायण के निमित्त पूजा, पाठ, दान, यज्ञ आदि करने से भगवत कृपा की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से तिलों का दान करना महा पुण्य फलप्रद माना गया है। मकर संक्रांति का पर्व हमारी संस्कृति और सभ्यता का विशेष अंग है। यह पर्व आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण है उतना ही भौतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें पवित्रता निर्मलता का संदेश तो देता ही है, त्याग और परोपकार की प्रेरणा भी देता है। जैसे बाहरी स्नान से शरीर निर्मल बनता है उसी प्रकार भीतरी स्नान से मन निर्मल बनता है। अतः तीर्थ में स्नान करते समय ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि हमारे वाह्य शरीर की शुद्धि के साथ-साथ मन की आंतरिक शुद्धि भी बनी रहे, हमारी उन्नति हो और हम दूसरों की उन्नति में सहायक बनें।

व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र तथा एक गाय यम, रुद्र एवं धर्म के नाम पर दे और चार श्लोकों को पढ़े, जिनमें से एक यह है 
'यथा भेदं' न पश्यामि शिवविष्ण्वर्कपद्मजान्।
 तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकर:शंकर: सदा।।'
अर्थात् 'मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता, वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला है। दूसरे शंकर शब्द का अर्थ है- शं कल्याणं करोति। यदि हो सके तो व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्राह्मण को आभूषणों, पर्यंक, स्वर्णपात्रों (दो) का दान करे। यदि वह दरिद्र हो तो ब्राह्मण को केवल फल दे। इसके उपरान्त उसे तैल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन देना चाहिए।

स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिए। संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।

प्रत्येक संक्रान्ति पर सामान्य जल (गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्यकर्म कहा जाता है, जैसा कि देवीपुराण में घोषित है- 'जो व्यक्ति संक्रान्ति के पवित्र दिन पर स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी एवं निर्धन रहेगा; संक्रान्ति पर जो भी देवों को हव्य एवं पितरों को कव्य दिया जाता है, वह सूर्य द्वारा भविष्य के जन्मों में लौटा दिया जाता है।
आज के दिन दान का महत्त्व 
मकर संक्रांति के द‍िन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान का बहुत महत्व है। आज के दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस फलीभूत होता है। मकर संक्रान्ति के दिन घी-तिल-कंबल-खिचड़ी आदि का दान करना चाहिए ।
आप को सूर्य उपासना  के पावन पर्व मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। 
ईश्वर से प्रार्थना है कि यह पर्व आप सभी के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि एवं प्रसन्नता लेकर आए। 
#मकरसंक्रांति2024
 #Makar Sankranti 2024 


पंडित के एन पाण्डेय (कौशल)+919968550003 
 ज्योतिष,वास्तु शास्त्र व राशि रत्न विशेषज्ञ 
 राष्ट्रीय महासचिव -श्री राम हर्षण शांति कुंज,दिल्ली,भारत

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