वीरांगना ताराबाई

ये इतिहास है हमारी वीरांगना बहनो का 

क्रूर मतान्ध औरंगज़ेब को उसके सपनों सहित दक्षिण में दफ़न कर देने वाली #वीरांगना_ताराबाई_जी_की_पुण्यतिथि* पर उन्हें शत् शत् नमन *…*..

छत्रपति शिवाजी महाराज की बहू थीं महारानी जिन्होंने झुकने नहीं दिया था भगवा ध्वज !!

ये भारत की वो वीरांगना थीं जिनका इतिहास अगर आज की नारियों, बालिकाओं को पढ़ाया जाता तो यकीनन उनमें ताराबाई बनने की प्रेरणा मिलती *.*. साथ ही अगर इनके गौरवशाली इतिहास को पुरुष पढ़ते तो किसी नारी की तरफ कुदृष्टि करने की हिम्मत न करते *लेकिन कलम हमेशा उनके हाथों में रही जो क्रूर मतान्ध औरंगज़ेब के गुणगान को लिखती रही और इतिहासकार वो सम्मानित रहे जो आज कल अपनी सेल्फी ले कर शान से कहते हैं कि वो गौ मांस खा रहे हैं …*..

कल्पना कीजिये कि क्या ऐसे लोगों के हाथों में इतिहास सुरक्षित रहा होगा और कम से कम हिन्दूवीर या वीरांगनाओं को उचित स्थान या उचित सम्मान मिला रहा होगा? अरे जिन्होंने स्वयं हिंदवी सम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज को उचित स्थान नहीं दिया उनसे उनकी बहू के लिए स्थान या सम्मान की आशा निरर्थक है *.*. भारत के इतिहास की पुस्तकों में अधिकांशतः हिन्दू राजाओं-रानियों एवं योद्धाओं को *पराजित* अथवा युद्धरत ही दर्शाया गया है *…*..

एक समय पर मराठों का साम्राज्य दक्षिण में तंजावूर से लेकर अटक *(आज का अफगानिस्तान)* तक था, लेकिन आपको अक्सर इस इतिहास से वंचित रखा जाता है और विदेशी हमलावरों तथा लुटेरों को विजेता, दयालु और महान बताया जाता है, सोचिए कि ऐसा क्यों है? *9 दिसम्बर 1761 को भगवा ध्वज वाहिका, '''छत्रपति शिवजी महाराज की बहू वीरांगना महारानी ताराबाई जी की पुण्यतिथि पर''' उनको बारम्बार नमन और वंदन करते हुए सुदर्शन परिवार उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने के संकल्प को दोहराता है* जिन्होंने क्रूर, मतान्ध औरंगज़ेब को उस के अरमानों के साथ दक्षिण में ही दफन करते हुए *अन्य सभी मत* मज़हब *वाले लोगों को* प्रदान की *निर्भयता .*. वीरांगना को प्रणाम *…*!!

भारत माता की जय *वन्देमातरम्*
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