वास्तु शास्त्र का मानव जीवन मे प्रभाव

"वास्तु शास्त्र का मानव जीवन में महत्त्व एवं प्रभाव"



वास्तुशास्त्र जीवन के संतुलन का प्रतिपादन करता है। यह संतुलन बिगड़ते ही मानव एकाकी और समग्र रूप से कई प्रकार की कठिनाइयों और समस्याओं
का शिकार हो जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार-
"पंचमहाभूतों" पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के विधिवत उपयोग से बने आवास में पंचतत्व से निर्मित
प्राणी की क्षमताओं को विकसित करने की शक्ति स्वत: स्फूर्त हो जाती है।

वास्तु का प्रभाव चिरस्थायी है,क्योंकि पृथ्वी का यह झुकाव शाश्वत है ! ब्रह्माण्ड में ग्रहों आदि की
चुम्बकीय शक्तियों के आधारभूत सिध्दांत पर यह निर्भर है, और सारे विश्व में व्याप्त है ! इसलिए
वास्तुशास्त्र के नियम भी शाश्वत है, सिध्दांत आधारित, विश्वव्यापी एवं सर्वग्राहा हैं। किसी भी विज्ञान के लिए अनिवार्य सभी गुण तर्क संगतता, साध्यता, स्थायित्व,
सिध्दांत परकता एवं लाभदायकता वास्तु के स्थायी गुण हैं। अतः वास्तु को हम बेहिचक 'वास्तु विज्ञान' कह 
सकते हैं।
जैसे आरोग्यशास्त्र के नियमों का विधिवत् पालन करके मनुष्य सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है ! 
उसी प्रकार वास्तुशास्त्र के सिध्दांतों के अनुसार भवन निर्माण करके प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखी
बना सकता है। रोग, तनाव और  अशांति देने वाले पहले के बने मकानों को वास्तुशास्त्र के सिध्दांतों के अनुसार 
ठीक करवा लेने पर मनुष्य जीवन में पुनः आरोग्य, शांति और सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है।   "युगल शर्मा"

**"वास्तु द्वारा "मधुमेह"का उपचार" 
"शुगर अर्थात मधुमेह" यह एक राजसी  रोग है जिसका निदान वास्तु शास्त्र में उपलब्ध है !!
प्रत्येक व्यक्ति का शरीर ऊर्जा का केंद्र होता है। जहाँ भी वह निवास करता है। 
वहां की वस्तुओं की ऊर्जा अपनी होती है, और वह मनुष्य की ऊर्जा से तालमेल 
रखने की कोशिश करती हैं। यदि उस भवन या स्थान की ऊर्जा उसके शरीर 
की ऊर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है ! शरीर से स्वस्थ रहता है ! सही निर्णय लेने में समर्थ होता है ! सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढ़ता है ! धन की वृद्धि होती है ! जिससे समृद्धि  बढ़ती है ! 
परन्तु वास्तु दोष होनें से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती !वह अनेक व्याधियों व रोगों से दु:खी होने लगता है ! उसे अपयश तथा हानि उठानी पड़ती है !!

बिलकुल स्पष्ट है कि- घर भवन का दक्षिणपश्चिम कोण में कुआँ, जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढता है !दक्षिण पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा याछोटे छोटे पौधे भी सुगर का कारण है !घर-भवन का दक्षिण पश्चिम कोना बढाहुआ है, तब भी शुगर होता है ! यदि दक्षिण पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड़ा भी हुआ है तो भी मधुमेह बढेगा ! इसलिये यह भाग सबसे ऊँचा रखे.दक्षिण पश्चिम भाग में सीवर का गढ़ा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है !
'ब्रहम स्थान' अर्थात घर का मध्य भाग भरी हो तथा घर के मध्य में आधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रहम भाग से 
सीडियां ऊपर की ओर जा रही हो तो समझ लें की शुगर का घर में आगमनहोने जा रहा है ! अर्थात दक्षिण पश्चिम 
भाग यदि आपने सुधर लिया तो काफी हद तक आप आसाद्य रोगों से मुक्त हो जायेंगे !

*अपने बेडरूम में कभी भूल कर भी खाना नहीं खाएं !
*अपने बेडरूम में जुते, चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी न रखे !
*मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल  करे तथा घड़े में हमेंशा ७ तुलसी के पत्ते डाल कर प्रयोग करें !
*दिन में एक बार अपनी माँ के हाथ का बना खाना या ईश्वर एवं माँ को मन से स्मरण व प्रणाम करके भोजन करें !
*हर मंगलवार को श्रीहनुमानजी को मिष्ठान का प्रसाद चढा कर दोस्तों व भक्तों को जरुर वितरित करें !
*रविवार को सूर्य भगवान को जल का अर्घ्य दे कर बंदरों को गुड़ खिलावें !
*इशान कोण से लोहे की सारी वस्तुएं हटा लें ! 
*हल्दी की एक गांठ लेकर एक चमच्च पानी से सिल पत्थर पर घिस कर सुबह खली पेट पीने से मधुमेह से मुक्ति हो सकती है ! 

**भाग्य का निर्माण वास्तु से नहीं अपितु कर्मसे होता है और वास्तु का जीवन मेंउपयोग एक कर्म है और इस कर्म कीसफलता का आधार वास्तुशास्त्रीय ज्ञान है। पांच आधारभूत पदार्थों भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश से यह ब्रह्मांड निर्मित है और ये पांचों पदार्थ ही पंच महाभूत कहे जाते हैं।

इन पांचों पदार्थों के प्रभावों को समझकर उनके अनुसार अपने भवनों का निर्माण कर मनुष्य अपने जीवन और कार्यक्षेत्र को अधिक सुखी और सुविधा संपन्न कर सकता है। 

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