#गोपाष्टमी 9 नवम्बर, 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय

  #गोपाष्टमी 09 नवम्बर, 2024 :-पंडित कौशल पाण्डेय  
 गौ माता की सेवा करो रे बन के तुम गोपाला,गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का एक नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अस्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। 




इस वर्ष गोपास्टमी  9 नवम्बर, 2024 को मनाई जाएगी। यह गायों की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित एक त्यौहार है। आज के दिन गाय माता की पूजा किया जाता है और गायों के प्रति सम्मान और उनकी रक्षा करने का संकलय लिया जाता है , हिंदू संस्कृति में, गायों को ‘गौ माता’ कहा जाता है और उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न प्रकार के पकवान और भोजन कराये जाते हैं।

गोपाष्टमी का महत्व क्या है? गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। उन्हें शुद्ध माना जाता है और हिंदू देवताओं की तरह उनकी पूजा भी की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि कई देवियां और देवता एक गाय के अंदर निवास करते हैं और इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी माना जाता है और यह देवी पृथ्वी का एक और रूप है। 

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों को एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। यह भक्तों को उनकी इच्छाओं को पूरा करने में भी मदद करता है। धार्मिक मान्यताएँ गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हम गाय को 'गोमाता' कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं। 

सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।'
 गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है। मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है। 

 पौराणिक कथा :- पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान इंद्र अपने अहंकार के कारण वृंदावन के सभी लोगों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने बृज के पूरे क्षेत्र में बाढ़ लाने का फैसला किया ताकि लोग उनके सामने झुक जाएं और इसलिए वहां सात दिन तक बारिश हुई। भगवान श्रीकृष्ण को एहसास हुआ कि क्षेत्र और लोग खतरे में हैं, अतः उन्हें बचाने के लिए उन्होंने सभी प्राणियों को आश्रय देने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। आठवें दिन, भगवान इंद्र को उनकी गलती का एहसास हुआ और बारिश बंद हो गई। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। भगवान इंद्र और भगवान श्रीकृष्ण पर सुरभी गाय ने दूध की वर्षा की और भगवान श्रीकृष्ण को गोविंदा घोषित किया जिसका मतलब है गायों का भगवान। यह आठवां दिन था जिसे अष्टमी कहा जाता है, वह विशेष दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

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