छठ पूजा (सूर्य उपासना का महापर्व) पंडित कौशल पांडेय 9968550003
ज्योतिष में सूर्य आत्मा का कारक भी है। इसी भगवान सूर्य की उपासना का पर्व पवित्र छठ पर्व है। यह देश के अन्य हिस्सों में भी न्यूनाधिक रूप से मनाया जाता है परंतु बिहार, झारखंड, पूर्वी, उरप्रदेश में यह पर्व बड़े स्तर पर और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पूर्वांचल का एक लोकप्रिय पर्व है।
सूर्य की किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों की आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं।
स्वर्ग सुराष्च गन्धर्वाः पाताले पन्नगादयः।
सूर्य की किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों की आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं।
स्वर्ग सुराष्च गन्धर्वाः पाताले पन्नगादयः।
मृत्युलोके मनुष्याष्च सर्वे ध्यायन्ति भास्करम्।।
अर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में रहने वाले देवता, गंधर्व, मनुष्य और सर्प आदि सभी सूर्य का ध्यान करते हैं। सूर्य सभी ग्रहों में प्रधान है, इसीलिए सूर्य को ‘ग्रहाधिराज’ की संज्ञा दी गई है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- ‘‘जगत को प्रकाशित करने वाली ज्योतियों में जो किरणों वाला (आदित्यगण) ’सूर्य’ है, वह मैं हूं।’’ यह उक्ति सूर्य नारायण की महिमा का ही प्रतीक है। सूर्य किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों कीे आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं।
सूर्य उपासना का महापर्व ही छठ पूजा है , इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। यह पर्व कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है ,
छठ पूजा का पर्व सूर्यदेव की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, इस व्रत को करने से आयु-आरोग्य, धन-यश की प्राप्ति होती है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं.
प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.
अर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में रहने वाले देवता, गंधर्व, मनुष्य और सर्प आदि सभी सूर्य का ध्यान करते हैं। सूर्य सभी ग्रहों में प्रधान है, इसीलिए सूर्य को ‘ग्रहाधिराज’ की संज्ञा दी गई है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- ‘‘जगत को प्रकाशित करने वाली ज्योतियों में जो किरणों वाला (आदित्यगण) ’सूर्य’ है, वह मैं हूं।’’ यह उक्ति सूर्य नारायण की महिमा का ही प्रतीक है। सूर्य किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों कीे आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं।
सूर्य उपासना का महापर्व ही छठ पूजा है , इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। यह पर्व कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है ,
छठ पूजा का पर्व सूर्यदेव की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, इस व्रत को करने से आयु-आरोग्य, धन-यश की प्राप्ति होती है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं.
प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.
छठ पूजा 2024
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय 5 नवंबर 2024
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना (लोहंडा) 6 नवंबर 2024
छठ पूजा का तीसरा दिन छठ पूजा, संध्या अर्घ्य 7 नवंबर 2024
छठ पूजा का चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य, पारण 8 नवंबर 2024
छठ पूजन कैसे करे :-
छठ पूजन का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
छठ पूजन का दूसरा दिन
लोहंडा और खरना के रूप में कार्तिक शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं.
छठ पूजन का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।
छठ पूजन का चौथा दिन सायंकाल अर्घ्य
छठ पूजन के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
छठ पूजा का आयोजन मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जहाँ भी रहते है बड़े ही धूम धाम से देश के कोने-कोने में सूर्य उपासना करते देखे जा सकते है ,विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं.
मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.
छठ पूजा से जुड़ी कथा-
सूर्यषष्ठी व्रत के विषय में देवभागवतपुराण में वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, राजा प्रियव्रत स्वायुभुष मुनि के पुत्र थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। विवाह के लंबे अंतराल के बाद एक पुत्र उत्पन्न हुआ, लेकिन वह मरा हुआ पैदा हुआ। राजा अपने नवजात पुत्र के शव को लेकर श्मशान भूमि पहुंचे और वहां विलाप करने लगे। उनके विलाप को सुनकर वहां से गुजर रही एक देवी रुकी और राजन से इस बारे में पूछा। राजा की व्यथा जानकर उस देवी ने कहा कि मैं ब्रह्मा जी की पुत्री देवसेना हूं। मेरा विवाह गौरी-शंकर के पुत्र कार्तिकेय से हुआ है। मैं सभी मातृकाओं में विख्यात स्कंध पत्नी हूं। इतना कह देवसेना ने राजा के मृत पुत्र को जीवित कर दिया और तत्पश्चात अंतध्र्यान हो गईं। यह घटना शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन की है, अतः इसी दिन से षष्ठी देवी की पूजा होने लगी। सूर्य की आराधना का यह पर्व छठ पूजा के नाम से विख्यात हो गया।
प्राकृतिक चिकित्सा (नैचुरोपैथी) में सूर्य का स्थान सर्वोपरि है। सूर्य स्नान से चर्मरोग, उदर रोग, कुष्ठ रोग, नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
रंग चिकित्सा विज्ञान (क्रोमोपैथी) के अनुसार सूर्य की रश्मियों से प्राप्त सात रंग (लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी)
मानव शरीर की रासायनिक प्रक्रिया में अत्यंत उपयोगी होते हैं।
लाल रंग के कांच के गिलास में दूध भरकर उदित होते सूर्य के सामने 1 घंटे तक रखें, और फिर इसका सेवन करें, पीलिया अथवा हृदय रोग से बचाव होगा।
सूर्योदय के समय सुखासन में बैठकर, बिना पलक झपकाए दो मिनट तक सूर्य को देखने से नेत्रों की रोशनी एवं आकर्षण बढ़ता है तथा संकल्प शक्ति दृढ़ होती है। योगशास्त्र में इस क्रिया को सूर्यत्राटक कहते हैं।
सूर्य की किरणों से हमें विटामिन-डी की प्राप्ति होती है। सर्दियों में धूप में शिशु की मालिश करने से हड्डियां विकसित एवं मजबूत होती हैं।
महानारायण तेल को धूप से गरम करके धूप में बैठकर मालिश करने से जोड़ों के दर्द और वात रोग आदि ठीक हो जाते हैं। सूर्य के इस महत्व के कारण ही वैदिककाल से सूर्य की उपासना पर बल दिया गया है।
वैद्य तो रोगी को स्वस्थ करने हेतु औषधियों का प्रयोग करते हैं, किंतु सूर्य अपनी दृष्टिमात्र से ही रोगी व्यक्ति को निरोगी बनाने में समर्थ है। आरोग्यं भास्करादमिच्छेद अर्थात् आरोग्य की कामना हमें सूर्य से करनी चाहिए, क्योंकि सूर्य ही आरोग्य के अधिष्ठित देवता हैं।
पद्मपुराण का कथन है, ‘सूर्यः सर्वरोगात् समुच्यते’ अर्थात सूर्य सब रोगों से मुक्ति दिलाता है।
मानव शरीर को स्वस्थ, क्रियाशील, ऊर्जावान एवं निरोगी बनाना सूर्य का ही कार्य है। ऋग्वेद (10/37/4) में सूर्य की प्रार्थना इस प्रकार की गई है-
‘‘हे सूर्यदेव! आप अपनी जिन ज्योतियों से अंधेरे को दूर करते हैं, उन्हीं ज्योतियों से हमारे पापों को दूर करें, रोगों और क्लेशों को नष्ट करें तथा दरिद्रता को मिटाएं।’’ से संबंधित रोग, जोड़ों में दर्द, चर्मरोग आदि होते हैं। कर्क राशि में सूर्य और चंद्र की युति हो अथवा कर्क राशि में सूर्य और सिंह राशि में चंद्र हो तो व्यक्ति को तपेदिक होता है।
यदि सूर्य द्वादश स्थान में हो तो नेत्ररोग होता है। सूर्य के पाप ग्रहों से युत या दृष्ट होने पर नेत्ररोग और अधिक कष्टप्रद होता है। कर्क राशि में सूर्य बैठा हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तो जातक को श्वास रोग होता है। सूर्य उपासना से रोगों का शमन ‘साक्षात् देवो दिवाकरः’ - भगवान सूर्य ही प्रत्यक्ष देवता हैं, वह कलियुग में शीघ्र सिद्धि प्रदाता हैं। सूर्योपासना से कर्ज से मुक्ति मिलती है और दरिद्रता दूर होती है। हृदय रोग, नेत्र रोग, रक्तविकार, कुष्ठ आदि सूर्य की उपासना से दूर हो जाते हैं.
ॐ घृणि सूर्याय नमः यह मंत्र बोलकर सूर्य देव को प्रतिदिन प्रातःकाल अर्घ प्रदान करें।
आप सभी को सूर्य उपासना का महपर्व छठ की हार्दिक शुभकामनायें व् बधाई।
पंडित कौशल पाण्डेय
(ज्योतिष, वास्तु व राशि रत्न विशेषज्ञ)
0 टिप्पणियाँ