ज्योतिष और रोग :-पंडित कौशल पाण्डेय +919968550003

ज्योतिष और रोग :पंडित कौशल पाण्डेय



आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हैं। आज कई बड़े रोगों का इलाज भी संभव है , लेकिन कौन सा रोग कब होगा ये विज्ञानं भी नहीं बता पायेगा , ज्योतिष शास्त्र द्वारा समस्त रोग पूर्व से ही जाने जा सकते है साथ ही समय से उनका निदान भी किया जा सकता हैं।
जन्म पत्रिका में षठा घर रोग का स्थान है,अष्टम घर मृत्यु का और बाहरवा 12 घर वयय खर्चे का स्थान है,जो ग्रह कुंडली के ६ भाव वे भाव में हो,अष्टम भाव में हो,बाहरवे भाव में हो छटेघर के मालिक से जो ग्रह छटे घर के मालिक के साथ हो, दूसरे घर के मालिक और सप्तम घर को मारक स्थान कहते है, वह अपनी दशा या अंतर दशा में रोग या चोट प्रदान करते है
शरीर में कब, कहां, कौन सा रोग होगा वह इसी से निर्धारित होता है। यहां पर स्थित क्रूर ग्रह पीड़ा उतपन्न करता है। उस पर यदि शुभ ग्रहो की दृष्टि न हो तो यह अधिक कष्टकारी हो जाता है।
रोगो से बचने के लिए प्राचीन काल से ही शास्त्रों में अनेक उपाय है -
हमारे वैदिक शास्त्रों में महामृत्युंजय, मृतसंजीवनी विद्या आदि का उल्लेख मिलता है जिसके जाप से अनेक रोगों से छुटकारा मिल सकता है .
यदि लग्नेश अस्त, नीच अथवा शत्रु राशि में स्थित हो तो ऎसा व्यक्ति बार-बार बीमार होता रहता है परंतु यदि शुभ ग्रह केन्द्र-त्रिकोण में स्थित हों तो उपर्युक्त योग के होने के उपरांत भी शरीर सुख (देह सुख) मिलते हैं।

जन्मकुंडली के द्वारा आप किस समय कौन से रोग से ग्रस्त हो सकते है और इसका निवारण क्या है , यह भली बहती जन्म पत्रिका के द्वारा जाना जा सकता है, जैसे हमारे लग्न कुंडली में कुल 12 भाव होते है किस भाव में कौन सा अशुभ ग्रह है और याग क्या रोग दे सकता है

आइये जानते है ....?
प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.
द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.
तृतीय भाव : कान (दायाँ कान), गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.
चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ,
पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.
छठा भाव : छोटी आंत, आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.
सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश, मूत्रनली.
अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.
नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.
दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.
एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.
द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक व्याधियां, अस्पताल में भर्ती होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.

आइये जानते है कौन सा ग्रह क्या रोग प्रदान करता है :-

1:- सूर्य रोग कारक हो तो :-ज्वर ,बुखार,शरीर में जलन रहना ,पित हृदय रोग heart failure /attack ,नेतर रोग ,चरम रोग skin disease ,अग्नि अस्त्र या विष poisoning से पीड़ा ,सर्प से भये ,मिर्गी .

2:-चंद्रमा रोग करक हो:- नींद न आना, नींद आये तो ज्यादा आये,रात को सोते हुए उठ कर चलना,आलस्य,आंख के देले की बीमारिया , कफ्ह,सर्दी के कारन बुखार,भूख न लगना,पीलिया,खून खराबी,जल से डर लगना,चित की थकावट ,किसी काम में मन न लगना,महिलाओ सम्बन्धी,इस्त्रियो का मासिक धरम का नियमत न होना,अनीमिया,आदि.

3:-मंगल रोग कारक हो:-
बहुत अधिक प्यास लगना,वायु जनित पित परकोप,पित ज्वर,अग्नि शस्त्र से चोट,गोली लगना ,कोढ़ मज्जा रोग,हड्डी के अन्दर मज्जा की कमी से रोग,नेतर रोग ,पेट में फोड़ा ,खुजली,खुदरा पण ,शरीर का कोई अंग टूटना .

बुध रोग कारक हो तो:-
नर्वस ब्रेक डाउन nervous brake down ,गले का रोगtonsils,गले का रोग,वाट पित काफ से उत्पन ज्वर,चरम रोग खुजली,दांतों के रोग ,गंध का पता न चले ,पीलियाjaundice, नपुंसकता आदि.

ब्रहस्पति गुरु रोग करक हो :-
ear कान के रोग,आंतडियो का ज्वर,पेट में फोड़ा गुलाम रोग,काफ से उत्पन रोग,पीलिया kidneyगुर्दे की बीमारी.
शुक्र रोग कारक हो:-
काफ ओर वायु के दोष से नेतर रोग,मोटर रोग,पेशाब करने में कठिनाई या कष्ट,वीर्य में कमी सम्भोग में अक्षमता impotence,अधिक सम्भोग के करण कमजोरी,शरीर का सुखना ,anemia रक्त में कमी के कारन पीलापन .
शनि रोग करक होने से:-
टांगो में दर्द लडखडाना ,अत्यधिक श्रम करने से थकान,जोड़ो का दर्द पक्षाघात ,वात ओर काफ द्वारा उत्पन रोग,मानसिक चिंता ,पिशाच पीड़ा,पेड़ या पत्थर से चोट ,आँखों के रोग,हर परकार की खांसी अदि .
राहू रोग कारक बने तो:-
हृदय रोग,विष के कारन बीमारिया कोढ़ सर्प ओर पिशाच पीड़ा,allergy ,मानसिक बीमारिया ,हिस्टीरिया ,depression ,भूलने की बीमारी ,fits दोरे पड़ना ,दिमाग की बीमारिया,आदि,अच्चानक चोट,कैंसर cancer प्लेग.

केतु के रोग:-
blood pressure कम या बड़ना,spine रीड की हड्डी के रोग, स्किन से related रोग,कोड,काम की बीमारिया sex related ,जोड़ो का दर्द अंडकोष उतर जाना,रसोली ,फोड़े फुंसीआदि .
अधिक जानकारी के लिए जन्मपत्रिका के साथ मिले या लिखे ....9968550003

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