प्रात:स्मरण:- पंडित कौशल पाण्डेय
प्रात: ब्रह्म मुहूर्त (लगभग 4 बजे) में उठने का प्रयास करें । यह बड़ा सुनहला समय होता है। इसी समय योगी महात्मा ध्यान, साधना और प्राणायाम करते हैं। उठने के तुरंत बाद हाथों के दर्शन करने चाहिये और यह मंत्र बोलना चाहिये -
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती,करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ।
समुवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले,विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ।।
हाथ (हथेली) के अगले भाग में लक्ष्मी का निवास है, हाथ (हथेली) के मध्य में सरस्वती तथा हथेली मूल (मणिबन्ध) में ब्रह्मा जी विराजमान हैं, प्रात: काल हाथ (हथेली) का दर्शन करें। हे पृथ्वी माता ! समुद्र आप के वस्त्र हैं, पर्वत आप के स्तनमण्डल हैं, हे विष्णुजी की पत्नी ! मैं आपको प्रणाम करता हूं – मेरे द्वारा आपका पांव से (अपने) स्पर्श के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।। १ ।।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।। २ ।।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।प्रणत्क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम: ।। ३ ।।
या कुन्देंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।या वीणावरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत्शंकरप्रभृतिभि: देवै सदा वन्दिता ।सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाडयापहा ।। ४ ।।
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।द्वंद्वातीतं गगनसदृशं, तत्त्वमस्यादिलक्षम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी: साक्षीभूतम् ।भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।। ५ ।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवै नम: ।। ६ ।।
पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिर: ।पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यशोको जनार्दन: ।। ७ ।।
अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा ।पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। ८ ।।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषण: ।कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन: ।। ९ ।।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका ।पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका: ।। १० ।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके,शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोsस्तुते ।। ११ ।।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती,करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ।
समुवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले,विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ।।
हाथ (हथेली) के अगले भाग में लक्ष्मी का निवास है, हाथ (हथेली) के मध्य में सरस्वती तथा हथेली मूल (मणिबन्ध) में ब्रह्मा जी विराजमान हैं, प्रात: काल हाथ (हथेली) का दर्शन करें। हे पृथ्वी माता ! समुद्र आप के वस्त्र हैं, पर्वत आप के स्तनमण्डल हैं, हे विष्णुजी की पत्नी ! मैं आपको प्रणाम करता हूं – मेरे द्वारा आपका पांव से (अपने) स्पर्श के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।। १ ।।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।। २ ।।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।प्रणत्क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम: ।। ३ ।।
या कुन्देंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।या वीणावरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत्शंकरप्रभृतिभि: देवै सदा वन्दिता ।सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाडयापहा ।। ४ ।।
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।द्वंद्वातीतं गगनसदृशं, तत्त्वमस्यादिलक्षम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी: साक्षीभूतम् ।भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि ।। ५ ।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवै नम: ।। ६ ।।
पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिर: ।पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यशोको जनार्दन: ।। ७ ।।
अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा ।पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। ८ ।।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषण: ।कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन: ।। ९ ।।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका ।पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका: ।। १० ।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके,शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोsस्तुते ।। ११ ।।
पंडित कौशल पाण्डेय
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