तुलसी विवाह , तुलसी महिमा , तुलसी जी के मुख्या नाम और कथा आरती :-

तुलसी विवाह , तुलसी जी के मुख्या नाम और कथा आरती :- पंडित कौशल पाण्डेय  

तारीख (Date)23 नवंबर 2023
वार (Day)गुरुवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started)22 नवंबर रात  11 बजकर 03 मिनट पर प्रारम्भ होगी
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended)23 नवंबर को रात  9 बजकर 01 मिनट पर यह एकादशी समाप्त होगी
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time)24 नवंबर को सुबह 6 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 58 मिनट तक है।
 



तुलसी विवाह  
आज देवउठनी एकादशी है कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है, आज के पावन पर्व पर शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह कराकर पुण्यात्मा लोग कन्या दान का फल प्राप्त करते है,

पदम पुराण में कहा गया है की तुलसी जी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है,उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है,उन्हे प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते है,सींचने से मृत्यु दूर भाग जाती है,तुलसी जी का वृक्ष लगाने से भगवान की सन्निधि प्राप्त होती है,और उन्हे भगवान के चरणो में चढाने से मोक्ष रूप महान फल की प्राप्ति होती है.अंत काल के समय ,तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार बंद हो जाता है

धात्री फलानी तुलसी ही अन्तकाले भवेद यदिमुखे चैव सिरास्य अंगे पातकं नास्ति तस्य वाई

श्रीमद्भगवत पुराण के अनुसार प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, 'जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।' यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।' बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।

तुलसी जी के मुख्य नाम इस प्रकार है :-

तुलसी जी को कई नामों से पुकारा जाता है. इनके आठ नाम मुख्य हैं - वृंदावनी, वृंदा, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, कृष्ण जीवनी और तुलसी.


तुलसीजी के नामो के अर्थ
१. वृंदा :- सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
२. वृन्दावनी :- जिनका उदभव व्रज में हुआ
३. विश्वपूजिता :- समस्त जगत द्वारा पूजित
४. विश्व -पावनी :- त्रिलोकी को पावन करनेवाली
५. पुष्पसारा :- हर पुष्प का सार
६. नंदिनी :- ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करनेवाली
७. कृष्ण-जीवनी :- श्री कृष्ण की प्राण जीवनी
८. तुलसी :- अद्वितीय


तुलसी नामाष्टक :- आज विश्व में तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. तुलसी पूजा करने के कई विधान दिए गए हैं. उनमें से एक तुलसी नामाष्टक का पाठ करने का विधान दिया गया है. जो व्यक्ति तुलसी नामाष्टक का नियमित पाठ करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है. इस नामाष्टक का पाठ पूरे विधान से करना चाहिए. विशेष रुप से कार्तिक माह में इस पाठ को अवश्य ही करना चाहिए.

नामाष्टक पाठ :-

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी.पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी.
एतभामांष्टक चैव स्तोत्रं नामर्थं संयुतम.य: पठेत तां च सम्पूज सौsश्रमेघ फलंलमेता..

श्री तुलसी प्रणाम
वृन्दायी तुलसी -देव्यै प्रियायाई केसवास्य च,विष्णु -भक्ति -प्रदे देवी सत्यवात्याई नमो नमः"

मैं श्री वृंदा देवी को प्रणाम करती हूँ जो तुलसी देवी हैं , जो भगवान् केशव की अति प्रिय हैं - हे देवी !आपके प्रसाद स्वरूप , प्राणी मात्र में भक्ति भाव का उदय होता है.

श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र
" यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च
तानि तानि प्रनश्यन्ति प्रदक्षिणायाम् पदे पदे"

आपकी परिक्रमा का एक एक पद समस्त पापों का नाश कर्ता है

तुलसी महिमा

तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यानी रोजाना तुलसी का पूजन करना मोक्षदायक माना गया है.यही नहीं तुलसी पत्र से पूजा करने से भी यज्ञ, जप, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। पर यह तभी संभव है, जब आप पूरी आस्था के साथ तुलसी जी की सेवा कर पाते हैं। पूजा का सही-विधान जानने के साथ-साथ तुलसी के प्रति आदर रखना भी जरूरी है। पद्म पुराण में कहा गया है की नर्मदा दर्शन गंगा स्नान और तुलसी पत्र का संस्पर्श ये तीनो समान पुण्य कारक है .

दर्शनं नार्मदयास्तु गंगास्नानं विशांवर, तुलसी दल संस्पर्श: सम्मेत त्त्रयं"

ऐसा भी वर्णन आता है की जो लोग प्रातः काल में गत्रोत्थान पूर्वक अन्य वस्तु का दर्शन ना कर सर्वप्रथम तुलसी का दर्शन करते है उनका अहोरात्रकृत पातक सघ:विनष्ट हो जाता है.

तुलसी दल और मंजरी चयन समय कुछ बातों का ख्याल रखें।

तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। तुलसी का एक-एक पत्ता तोड़ने के बजाय पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए. यही शास्त्रसम्मत भी है.प्राय: पूजन में बासी फूल और पानी चढ़ाना निषेध है, पर तुलसीदल और गंगाजल कभी बासी नहीं होते। तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता।

निम्न मंत्र को बोलते हुए पूज्यभाव से तुलसी के पौधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्रभाग को तोडे़. इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है.
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया।चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वदंगसंभवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिमृ।तथा कुरु पवित्रांगि! कलौ मलविनाशिनि।।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में श्री भगवान तुलसी के प्रति कहते है - पूर्णिमा, अमावस्या , द्वादशी, सूर्यसंक्राति , मध्यकाल रात्रि दोनों संध्याए अशौच के समय रात में सोने के पश्चात उठकर,स्नान किए बिना,शरीर के किसी भाग में तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी दल चयन करता है वह मानो श्रीहरि के मस्तक का छेदन करता है.

द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी ना करे, क्योकि तुलसी भगवान कि प्रेयसी होने के कारण हरि के दिन -एकादशी को निर्जल व्रत करती है.अतः द्वादशी को शैथिल्य,दौबल्य के कारण तोडने पर तुलसी को कष्ट होता है.

तुलसी चयन करके हाथ में रखकर पूजा के लिए नहीं ले जाना चाहिये शुद्ध पात्र में रखकर अथवा किसी पत्ते पर या टोकरी में रखकर ले जाना चाहिये.

इतने निषिद्ध दिवसों में तुलसी चयन नहीं कर सकते,और बिना तुलसी के भगवत पूजा अपूर्ण मानी जाती है अतः वारह पुराण में इसकी व्यवस्था के रूप में निर्दिष्ट है कि निषिद्ध काल में स्वतः झडकर गिरे हुए तुलसी पत्रों से पूजन करे.और अपवाद स्वरुप शास्त्र का ऐसा निर्देश है कि शालग्राम कि नित्य पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी दल का चयन किया जा सकता है.

तुलसी जी की आरती :-

तुलसी महारनी नमो-नमो, हरि कि पटरानी नमो-नमो
धन तुलसी पुरन तप कीनो शालिग्राम बनी पटरानी
जाके पत्र मंजर कोमल, श्रीपति कमल चरण लपटानी
धूप-दीप -नवेध आरती , पुष्पन कि वर्षा बरसानी
छप्पन भोग ,छत्तीसो व्यंजन ,बिन तुलसी हरि एक ना मानी
सभी सुखी मैया, तेरो यश गावे , भक्ति दान दीजै महारानी
नमो-नमो तुलसी महरानी , नमो-नमो तुलसी महारानी

पंडित कौशल पाण्डेय 9968550003

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ